Tag: Hindi poetry

Kumar Ambuj

अकुशल

बटमारी, प्रेम और आजीविका के रास्तों से भी गुज़रना होता है और जैसा कि कहा गया है इसमें कोई सावधानी काम नहीं आती अकुशलता ही देती...
Deepti Naval

कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है

कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है चाँदनी उतर आयी बर्फ़ीली चोटियों से तमाम वादी गूँजती है बस एक ही सुर में ख़ामोशी की यह आवाज़ होती है… तुम कहा करते हो न! इस...
Devendra Sharma

देवेन्द्र शर्मा की कविताएँ

दैवीय प्रेम गाहे-बगाहे, अपने प्रेम को महानता और अपने अनुरोध को वैधता देने के आशय से मैंने हमारे साथ होने को दैवीयता के धागों से बुना; मसलन ये कि बिना चाँद...
Naresh Saxena

आधा चाँद माँगता है पूरी रात

पूरी रात के लिए मचलता है आधा समुद्र.. आधे चाँद को मिलती है पूरी रात आधी पृथ्वी की पूरी रात.. आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है पूरा सूर्य.. आधे...
Ankush Kumar

अंकुश कुमार की कविताएँ

वक़्त वक़्त रुककर चल रहा है मेरे बीच से गुज़रते हुए, मैं देखता हूँ कि कई सदियाँ गुज़र गयी हैं मुझसे होकर मेरे समूचे अस्तित्व में कोयले की कालिख लगी...
Badrinarayan

प्रेमगीत

मेरे कुरते में चाँद का कॉलर और तारे का बटन मेरे कुरते में पहाड़ों की पीठ पर प्यासी भागती हिरणी के धुंधते पाँव मेरे कुरते में सोने के केशों...
Malay

शामिल होता हूँ

मैं चाँद की तरह रात के माथे पर चिपका नहीं हूँ, ज़मीन में दबा हुआ गीला हूँ गरम हूँ फटता हूँ अपने अंदर अंकुर की उठती ललक को महसूसता देखने और रचने...
Harishankar Parsai

शूल से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं?

हास्य और तंज़ को पलटकर देखा जाए तो संवेदना और मर्म कोने में कहीं छिपकर बैठे होते हैं.. अपने तीखे और मारक चोट करने वाले व्यंग्य के लिए जाने जाने वाले हरिशंकर परसाई ने कविताएँ भी लिखी हैं जिनका विषय जितना सामाजिक है, उतना ही व्यैक्तिक.. पढ़िए उन्हीं में एक कविता..
Kunwar Bechain

चीज़ें बोलती हैं

अगर तुम एक पल भी ध्यान देकर सुन सको तो, तुम्हें मालूम यह होगा कि चीजें बोलती हैं। तुम्हारे कक्ष की तस्वीर तुमसे कह रही है बहुत दिन हो गए...
Baba Nagarjuna

गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार...
Om Prakash Valmiki

कविता और फ़सल

ठण्डे कमरों में बैठकर पसीने पर लिखना कविता ठीक वैसा ही है जैसे राजधानी में उगाना फ़सल कोरे काग़ज़ों पर। फ़सल हो या कविता पसीने की पहचान हैं दोनों ही। बिना पसीने...
Baba Nagarjuna

आओ रानी

"आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की यही हुई है राय जवाहरलाल की.." यह कविता नागार्जुन ने तब लिखी थी, जब भारत की आज़ादी के बाद ब्रिटेन की महारानी भारत आयी थीं.. तत्कालीक सरकार पर अविश्वास और जिनकी गुलामी भारत विभाजन में परिणत हुई, उन्हीं के स्वागत पर व्यंग्य इस कविता में साफ झलकता है!
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