याद बहुत आते हैं गुड्डे-गुड़ियों वाले दिन
दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
ओलम, इमला, पाटी, बुदका, खड़ियों वाले दिन
बात-बात में फूट रही फुलझड़ियों वाले दिन

पनवाड़ी की चढ़ी उधारी, घूमें मस्त निठल्ले
कोई मेला-हाट न छूटे, टका नहीं है पल्ले
कॉलर खड़े किए, हाथों में घड़ियों वाले दिन
ट्रांजिस्टर पर हवामहल की कड़ियों वाले दिन

लिख-लिख, पढ़-पढ़, चूमें-फाड़ें बिना नाम की चिट्ठी
सुबह, दुपहरी, शाम उसी की बातें खट्टी-मिट्ठी
रूमालों में फूलों की पंखुड़ियों वाले दिन
हड़बड़ियों में बार-बार गड़बड़ियों वाले दिन

सुबह-शाम की दण्ड-बैठकें, दूध पीएँ भर लोटा
दंगल की ललकार सामने, घूमें कसे लंगोटा
मोटी-मोटी रोटी, घी की भड़ियों वाले दिन
गइया, भैंसी, बैल, बकरियाँ, पड़ियों वाले दिन

दिन-दिन बरसे पानी, भीगे छप्पर आँखें मींचे
बुढ़िया दबा रही हैं झाड़ू सिलबट्टा के नीचे
टोना सब बेकार, जोंक-मिचकुड़ियों वाले दिन
घुटनों-घुटनों पानी, फुंसी-फुड़ियों वाले दिन

घर भीतर मनिहार चढ़ाए चुड़ियाँ कसी-कसी सी
पास खड़े भइया मुस्काएँ, भौजी फँसी-फँसी सी
देहरी पर निगरानी करतीं बुढ़ियों वाले दिन
बाहर लाठी-मूँछें और पगड़ियों वाले दिन

तेज़ धार करती बंजारन चक्का ख़ूब घुमाए
दाब दाँत के बीच कटारी मंद-मंद मुस्काए
पूरा गली-मोहल्ला घायल, छुरियों वाले दिन
छुरियों-छुरियों छूट रही छुरछुरियों वाले दिन

‘शोले’ देख छुपा है ‘वीरू’ दरवाज़े के पीछे
चाचा ढूँढ रहे हैं बटुआ फिर तकिया के नीचे
चाची बेंत छुपाती घूमें, छड़ियों वाले दिन
हल्दी गर्म दूध के संग फिटकरियों वाले दिन

ये वो दिन थे जब हम लोफ़र आवारा कहलाए
इससे ज़्यादा इस जीवन में कुछ भी कमा न पाए
मँहगाई में फिर से वो मंदड़ियों वाले दिन
कोई लौटा दे चूरन की पुड़ियों वाले दिन!