यह जो दो हाथों वाला
दो पैरों वाला प्राणी है,
कहते हैं,
पहले चार पैरों वाला
पशु था।
दो पैरों से चलकर
दो पैरों से काम करके-
उन्हें हाथ बना लिया
और आदमी बन गया।

उसमें अपार शक्ति है-
वह समन्दर पाट सकता है
पहाड़ों को काट सकता है
धरती के गर्भ से
जलधारा फोड़ सकता है
और
नदियों की धारा मोड़ सकता है
आग को पानी बना सकता है
और
पानी में आग लगा सकता है
परन्तु, लगता है
एक चक्र पूरा हो गया है
आदमी फिर पशु हो रहा है
दल के दल बनाकर
गलियों और बाज़ारों में
निकल पड़ता है
और
…की जय हो
…का नाश हो
…ज़िन्दाबाद
…मुर्दाबाद
के नारों से
कानों के पर्दे फाड़ता है
हाथ रोककर
क़लम रोककर
मशीनें रोककर
गाड़ी रोककर
काम बन्द कर देता है
घेराव करता है
अपनी ही बनाई हुई
दुनिया को
तोड़ता है
फोड़ता है
आग लगाता है
अपने ही सजातीय के
गले में ज़हर उतारता है
उन्हें मारता है, काटता है
नये-नये हिरोशिमा
और
नागासाकी बनाता है
आत्मा पर
शरीर की जय के
पड्यन्त्र रचाता है,
उसमें जो मानव जाग गया है
उसे बलात् सुलाता
और अपने में चिरसुप्त
सिंहों और भेड़ियों को
जगाता है

काश! यह चक्र पूरा हो जाए
और आदमी का युग
फिर से शुरू हो जाए।