हमें ताम्बा होना चाहिए और जस्ता
लोहा और एल्यूमीनियम
पीतल और चान्दी
सोना और प्लेटिनम
हीरा और प्ल्यूटोनियम

हममें से किसी-किसी को
मोती भी होना चाहिए या खनिज तेल
डीज़ल या पेट्रोल
मिट्टी का तेल तक बनने के लिए
तैयार होना चाहिए
और कोयला भी

या शीतल जलधार धधकते भू-खण्ड की
या पानी का सोता ऊँचे पर्वत पर
हमें तारागण होना चाहिए
अपने अक्षांशों-देशांशों पर पृथ्वी की परिक्रमा करते
ग्रह होना चाहिए
सूर्य होने की हद तक हममें से किसी को
धधकना चाहिए अपनी आत्मा में

हममें से किसी को चिड़िया होना चाहिए
क्योंकि उसमें उड़ान है
किसी को बैल
क्योंकि उसके पास सींग हैं, चौड़ी पीठ, मज़बूत पुट्ठे
किसी को वनस्पति होना चाहिए
क्योंकि उसमें है अमृत की बूँदें, परियों के घोंसले
दूसरों के लिए बनते दरवाज़े और खिड़कियाँ
पालना और आग

किसी को
हाँ, हममें से किसी को सर्प भी होना चाहिए
क्योंकि उसमें विष है, विष को काटने वाला
हममें से किसी को मछली होना चाहिए
फ़ासफ़ोरस के लिए
किसी को मृग : कस्तूरी के वास्ते

किसी को
मनुष्य होने के बावजूद हम सबको
चौरासी लाख योनियों की ताक़त जोड़कर
समरसता हासिल करनी चाहिए
पृथ्वी की, वायु की, आकाश-पाताल की

हमें भू-खण्ड नहीं
अनन्त सम्भावनाओं से भरा ब्रह्माण्ड बनना चाहिए
मिल-जुलकर आपस में

कितना छोटा होता जा रहा हूँ मैं
कितना नगण्य
प्राणियों से स्पन्दित इस विराट में
लेकिन कितना खुला
कितना प्रवहमान
ख़ुद को उनके हर विस्मय, हर अधीरता से जोड़कर
घुलता हुआ उनके आत्मीय प्रवाह में!

सोमदत्त की कविता 'मांडणे और नारे'

Recommended Book:

Previous articleकविताएँ: मई 2021
Next articleसफ़ेद रात

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here