कितने दिनों बाद
आज फूलों को रंग मिलें हैं,
तितली को नए रास्ते,
नदियों को उनकी चमक,
बादलों को उनकी उड़ान
आसमान को चित्र
पंछियों को तिनके,
कितने दिनों बाद..
हवा आज न तेज़ है, न मन्द
छत के दरवाजे खोले गए हैं
टहलना हुआ है,
ऊँघना भी,
पुराने गाने सुने जा रहे हैं…
कितने दिनों बाद
आज फुरसत मिली है
कितने दिनों बाद
आज धूप खिली है..!

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मुदित श्रीवास्तव
मुदित श्रीवास्तव भोपाल में रहते हैं। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कॉलेज में सहायक प्राध्यापक भी रहे हैं। साहित्य से लगाव के कारण बाल पत्रिका ‘इकतारा’ से जुड़े हैं और अभी द्विमासी पत्रिका ‘साइकिल’ के लिये कहानियाँ भी लिखते हैं। इसके अलावा मुदित को फोटोग्राफी और रंगमंच में रुचि है।

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