पर्वत हो भुजदण्ड सभी के, आँखें हो अंगार
जय जयकार जय जयकार, हो मानव की जय जयकार,
ऐसी ऊर्जा हो तन में जो लुप्त नहीं हो पाए
जीवन भर रहे आँख खुली, मन सुप्त नहीं हो पाए,
उदर बराबर चाँद रहे सब तारें हो ठुड्डी पर
नाक रहे तारों से ऊँची, ऊँचा हो सबसे सर,
कम्पित हो सम्पूर्ण चराचर, ऐसी हो ललकार
जय जयकार जय जयकार, हो मानव की जय जयकार,
उंगली पर हो धार समय की, अंगूठे पर सृष्टि
कौऐ सा मन चंचल हो, और बगुले जैसी दृष्टि,
साँसों में तूफान बसे औ कण्ठ में ध्वनि पनाले
अंधकार सिमटे बालों में, आँखों में उझियाले,
सीने में अग्नि सिमटी हो, जीभ करे संचार
जय जयकार जय जयकार, हो मानव की जय जयकार,
नाखून हो हथियार के जैसे, शेर सरीखी खाल
मुट्ठी में हो भाग्य सभी के, पैरों में महाकाल,
खून हो बहते लावे सा, हो मन में न कोई शंका
दसों दिशा हर कालखण्ड में बजै जीत का डंका,
हार से हो इंकार विजय के टीके से श्रृंगार
जय जयकार जय जयकार, हो मानव की जय जयकार!