एक दिन ऐसा आएगा
जब दौड़ते-भागते भँवर में
हम अस्तित्व खोजेंगे हमारा।
जब ज़िन्दगी की कमाई के नाम पर
यादों की कुछ स्याह पातियाँ
हमारी हथेली पर रख दी जाएँगी
जब हम खोजेंगे वो सुकून
जिसे कमाने के लिए ख़ुद खर्च हुए
कभी चले कभी दौड़े
कभी थक कर वहीं बैठ गए।
तब वो हज़ार हाथ
जो कभी हर वक़्त सहारा देते थे
बेबस, लाचार से नज़र आएँगे।
तब हम वो सारे सवाल नहीं करेंगे
जो हर वक़्त किया करते थे
क्योंकि सारे जवाब हमारे पास होंगे
पर सवाल नहीं होंगे।
कभी द्वन्द होंगे, कभी युद्ध होंगे
इस शाश्वत समर में
हम ही हमारे विरुद्ध होंगे।
तब शायद हम फ़तह नहीं होंगे
विजय हमारा ध्येय नहीं होगा
पर वह निश्चित ही मोक्ष होगा
सदा के लिए।

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