तुम किसी रोज़ सफर पर निकलो
कुछ पाने के बहाने,
और वो वहीं अहाते में पड़ा हो
पर नज़र ना आए।
मुमकिन है।
मुमकिन है,
जैसा कि मर्फी का सिद्धांत कहता है
“जो कुछ ग़लत हो सकता है
होकर रहेगा।” सत्य हो
फ़िर भी तुम रोज़ नए
समीकरण बनाओ
पर हर दफ़े हार जाओ।
मुमकिन है,
उस जादूगर की तरह
तुम्हारी जान भी किसी
तोते में अटकती हो,
जैसा लोग कहते हैं
ये ज़िस्म फ़ना होने पर
सिर्फ़ रूह भटकती हो।
मुमकिन है,
वो प्यासा कौव्वा जो
कंकड़ चुनता था प्यास बुझाने को
अचानक कंकड़ चुनना छोड़ दे
और अन्त में घड़े में ही दम तोड़ दे।
मुमकिन है,
हर एक वो चीज़
जो तुम्हें लगता है कि
मुमकिन नहीं।
बस तुम देख ना पाओ
उसे घटते हुए।
और जब देखो
तब तक सब ख़ाक हो जाए।
बेशक़,
मुमकिन है!