जैसे शिल्पकार छाप छोड़ देते है बेजान दीवारों पर
जैसे पहली बारिश कर देती है नशे में पूरे जंगल को
जैसे साम्राज्यों की कहानी बयाँ कर देती है जीती और विलुप्त सभ्यताएँ
जैसे चेहरे पर दौड़ती लकीरें खोल देती है अंतर्कलह को
जैसे स्याह रात के बाद नयी सुबह भर देती है नयी उम्मीदें
ऐसे ही तुम्हारा प्रेम मुक्कमल करेगा मेरे अधूरे जीवन को