धुंडीराज गोविन्द फाल्के यानि दादा साहेब फाल्के को भारतीय फिल्मों का जनक माना जाता है। जब अमेरिका में डी. डब्ल्यू. ग्रिफिथ अपनी पहली फिल्म ‘द बर्थ ऑफ़ अ नेशन’ बना रहे थे, उसके पूरी होने से पहले दादा साहब फालके ने ‘राजा हरीशचन्द्र’ बनाकर भारत को विश्व सिनेमा के समकक्ष खड़ा कर दिया। 3 मई 1913 का मुंबई के कोरोनेशन सिनेमा में इसका प्रदर्शन हुआ और यह लगातार 13 दिन तक चली। बाद में 28 जून को एलेक्जेंडर सिनेमा में यह फिर लगी और पुणे, सूरत, कलकत्ता, कोलम्बो तथा रंगून में भी इसके प्रदर्शन हुए। यह तीन रील की फिल्म थी और इसकी अवधि लगभग एक घंटा थी।

‘राजा हरीशचंद्र’ को भारत की पहली फिल्म होने का गौरव प्राप्त है। हालाँकि इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो आर. जी. तोरने ने ‘भक्त पुण्डलिक’ नामक फिल्म इससे भी पहले बनाई थी, जिसका प्रदर्शन 18 मई 1912 को हुआ था किन्त फिर भी उसे पहली भारतीय फिल्म का दर्जा नहीं दिया गया, क्योंकि वह अपने आप में एक स्वतंत्र फिल्म नहीं थी, बल्कि एक नाटक का फिल्मांकन था। दूसरे, वह एक ‘ए डेड मेन्स चाइल्ड’ के साथ दिखाई जा रही थी और इसका कैमरामैन भी विदेशी था जबकि ‘राजा हरीशचंद्र’ सम्पूर्ण भारतीय फिल्म थी। इसका कथानक, इसके कलाकार, तकनीशियन, लोकेशन आदि सभी भारतीय थे और यह स्वतंत्र रूप से प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म में स्त्री पात्रों की भूमिका के लिए लाख कोशिशों के बाद भी कोई महिला काम करने को तैयार नहीं हुई थी। फिल्म की नायिका तारामती का रोल अन्ना सालुंके नामक पुरुष ने किया था।

‘राजा हरीशचंद्र’ की अपार सफलता से उत्साहित दादा फाल्के ने मात्र तीन महीने में एक और फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ बना डाली। दिसंबर 1913 में मुंबई के ओलम्पिया थिएटर में इस फिल्म का प्रदर्शन किया गया। यह भी लगभग एक घंटे की फिल्म थी। इस फिल्म ने कमला बाई गोखले के रूप में भारत को पहली महिला अभिनेत्री की सौगात दी। कमलाबाई मूलतः रंगमंच की अभिनेत्री थी। वे उन दिनों नाटकों में काम करती थी, जब महिलाओं को नाटक या फिल्म देखना भी अपराध मन जाता था। एक बार `राजा गोपीचंद’ नामक नाटक के मंचन के दौरान उनके पति रघुनाथ की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। तब कमलाबाई ने ‘शो मस्ट गो ऑन’ के सिद्धांत को ध्यान में रखकर अदम्य सहस का परिचय देते हुए पुरुष की पोषाख पहन कर अपने पति की भूमिका की। उस समय उनकी आयु मात्र 28 वर्ष थी। उनके पोते विक्रम गोखले आज के सफल अभिनेता हैं।

1917 में दादा साहब फालके ने ‘लंका दहन’ नामक फिल्म बनाई, जो भारत की पहली ‘ब्लॉक बस्टर सुपरहिट’ फिल्म थी। इस फिल्म को पूरे देश मेँ भारी सफलता मिली। अकेले मुंबई में पहले 10 दिनों में इसने 32 हज़ार रुपयों की कमाई की। जिस भी सिनेमाघर में यह फिल्म दिखाई जाती, उसके चारों तरफ बैलगाड़ियाँ खड़ी हो जातीं और टिकिट खिड़की पर होने वाली आय, जो कि चिल्लरों में हुआ करती थी, को बोरों में भर के बैलगाड़ियों पर लाद कर दादा के घर लाया जाता था।

Previous articleक्यों ज़रूरी है उर्दू को धार्मिक पहचान से बाहर निकालना?
Next articleउदय प्रकाश कृत ‘अरेबा परेबा’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here