अनपढ़-जाहिल का
फ़र्क फंसा है
कुतर्कों में
एक तर्क फंसा है

बात है मेरी
पर तू ज़्यादा
आधी कुंठा
क्रोध है आधा
व्यंग्य है छिछले
भाषा नीची
अभिमानों ने
मुट्ठी भींची
संवादों का
सम्पर्क फंसा है
कुतर्कों में
एक तर्क फंसा है

मैं बोलूँ या
चुप हो जाऊँ
या बस हाथ से
हाथ मिलाऊँ
जो बहरे हैं
वो चिल्लाएँ
गूंगे अपने
कान से जाएँ
कहना-सुनना
कर्म हुआ जब
तब से फल में
नर्क फंसा है
कुतर्कों में
एक तर्क फंसा है..

चित्र श्रेय: Elijah O’Donnell

पुनीत कुसुम
कविताओं में स्वयं को ढूँढती एक इकाई..!