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Arifa Shahzad

गुफ़्तगू नज़्म नहीं होती है

गुफ़्तगू के हाथ नहीं होते मगर टटोलती रहती है दर ओ दीवार फाड़ देती है छत शक़ कर देती है सूरज का सीना उंडेल देती है हिद्दत-अंगेज़ लावा ख़ाकिसतर...
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