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मरेंगे साथ, जियेंगे साथ
पगडण्डी, पतली-दुबली लजीली। उस पर हमारे पैरों का बोझ। हरियाली में जाकर वह लजवंती खो गई। छेवड़िया ऊँघ रहा था। हवा सनसना रही थी।...
बाँध भाँगे दाओ
"लोग घर में मरते थे। बाज़ार में मरते थे। राह में मरते थे। जैसे जीवन का अन्तिम ध्येय मुट्ठी भर अन्न के लिए तड़प-तड़पकर मर जाना ही था।"