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Dalpat Chauhan

व्यथा

अनुवाद: मायाप्रकाश पाण्डेय मैं भी हैरान हूँ इस परकीय संस्कृति में जन्म लेकर त्रस्त हृदय मेरे तू और तुम भी चलो प्रिये चलो द्वार-द्वार पर बैठाए मंदिरों को फेंक दें खाई...
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