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मंदिर वाली गली
"अब दूर-दूर के यात्री अपना लिबास कहाँ छोड़ आएं, राय साहिब और उन बेचारों के चेहरे मुहरे जैसे हैं वैसे ही तो रहेंगे। बंगाली, महाराष्ट्री, गुजराती और मद्रासी अलग-अलग हैं तो अलग-अलग ही तो नज़र आएँगे। अपना-अपना रूप और रंग-ढंग घर में छोड़कर तो तीर्थ यात्रा पर आने से रहे।"