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आखिरी हीला
पत्नी गाँव के घर में हैं और अपने पति से आग्रह कर रही हैं कि आकर उन्हें ले जाएँ, लेकिन लेखक महोदय कोई न कोई बहाना करके टालते आ रहे हैं.. लेकिन अंत में गलती से एक ऐसा आखिरी हीला (बहाना) बना देते हैं कि चारों खाने चित्त!प्रेमचंद ने अपने लेखन में उद्देश्य को सदैव ऊपर माना, इसलिए यह चुटीलापन जैसा इस कहानी में है, उनके अधिकांश लेखन में नहीं मिलता, लेकिन जहाँ मिलता है, मोहित किए बिना नहीं रहता। पढ़िए!