ख़ुशिया सोच रहा था।बनवारी से काले तम्बाकूवाला पान लेकर वह उसकी दुकान के साथ लगे उस संगीन चबूतरे पर बैठा था जो दिन के...
भीमकाय चट्टान टूट कर बन गए है रेत
रेत का ज़र्रा-ज़र्रा फिसल रहा है
मेरी भींची मुट्ठी से
जैसे फिसलता है कदम
जमी काई पर...
किसी रोज मैंने उसे...