स्वाद
शहर की इन
अंधेरी झोपड़ियों में
पसरा हुआ है
मनो उदासियों का
फीकापनदूसरी तरफ़
रंगीन रोशनियों से सराबोर
महलनुमा घरों में
उबकाइयाँ हैं
ख़ुशियों के
अतिरिक्त मीठेपन सेधरती घूमती तो है
मथनी की तरह...
हम पृथ्वी की शुरुआत से स्त्री हैं
सरकारें बदलती रहीं
तख़्त पलटते रहे
हम स्त्री रहे
विचारक आए
विचारक गए
हम स्त्री रहे
सैंकड़ों सावन आए
अपने साथ हर दूषित चीज़ बहा...
अनुवाद: पंखुरी सिन्हा
युद्ध के बाद ज़िन्दगी
कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं
बग़ीचे की झाड़ियाँ
हिलाती हैं अपनी दाढ़ियाँ
बहस करते दार्शनिकों की तरह
जबकि पैशन फ़्रूट की नारंगी
मुठ्ठियाँ जा...
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