खिड़की के बाहर जंगल था
खिड़की पर चिड़िया बैठी थी
मैंने यह पूछा चिड़िया से—
“चिड़िया-चिड़िया, कितना जंगल?”

चिड़िया ने तब आँख नचायी
चिड़िया ने तब पंख फुलाए
मेरी तरफ़ देखकर चिड़िया
चली गई उड़कर चुपचाप।

खड़ा-खड़ा मैं रहा पूछता—
“चिड़िया-चिड़िया, कितना जंगल?’”

तब वे आए और बंद की
खिड़की मेरी, हँसकर बोले—
“छोड़ो भी बचकानी बातें
कैसी चिड़िया? कैसा जंगल?”

Book by Sanjeev Mishra: