रूपान्तर: नामदेव
1
एकलव्य की
गुरु-दक्षिणा:
लटका दो— सर
द्रोणाचार्य का
युगों तक!
2
दर्द ने
मेरा सीना चीरकर
मौत को टाल दिया!
3
सिन्धु!
तेरे सीने पर
छोड़े हैं पद-चिह्न
अपनी तहज़ीब के!
4
सूर्य को जब
हथेली से न ढाँक सकी
तब
आँखों को ढाँककर कहा—
सूर्य उदय नहीं हुआ!
5
हर दुर्घटना ने
मुझे एक
नयी राह दी है
आगे बढ़ने की!
6
दुःख कैसे बेशुक्रे हैं
जब अकेला पाते हैं
घेर लेते हैं!
7
राहों को
रोशन करने के लिए
जलाना पड़ता है
अन्तर तम को!