“सुनो।”
“हाँ।”
“अगर मेरे लिए कोई मन्दिर बनाकर उसमें मेरी मूर्ति रखे, तो मुझे तो बहुत अच्छा लगे।”
“पर ऐसे पूजने वाले ज्यादा हो जायेंगे और प्यार करने वाले कम।”
“प्यार करने वाले चाहिए भी कितने, कोई एक ही हो बस।”
“कुछ कहलवाना चाहती हो?”
“हाँ, आज तो दिन भी है, हाँ तो तुम कुछ कह रहे थे..”
“छोड़ो ना, मन की बात है, मन ही में रहने दो। चलो.. मोमोज़ खिलाता हूँ तुम्हें।”