तुम परेशान हो
कि गुलमोहर सूख रहे हैं
पेड़ कट रहे हैं
चिड़ियाँ मर रही हैं
और इस शहर में बसन्त टिकता नहीं…
इस्पात की धमनियों में
जब तक आदमी
अपने को लोहे में बदलता रहेगा,
मशीनों को अपना ख़ून सौंपता रहेगा,
और जब तक फेफड़ा उसका
धुएँ में घुलता रहेगा,
गुलमोहर की उम्र नहीं बढ़ेगी
औरत जब अपने बच्चों के साथ
कपड़ों में आग लगाती है,
आदमी जब गला घोंट लेता है अपना ही,
उस अँधेरे बग़ीचे में
तब कुल्हाड़ी चलती है सीने पर
दिलो-दिमाग़ पर…
पेड़ की छाल पर ही नहीं
और सिर्फ़ पेड़ ही नहीं कटते हैं
आदमी कटता है
औरत कटती है
और वक़्त नहीं कटता है!
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