‘Siyasat’, a poem by Shekhar Azamgarhi

वादों की सिगरेट जलाकर
बहुमत का धुआँ उड़ा
मुद्दों की राख उड़ाता चला
नफ़रत के निकोटिन का आदी

फेफड़े में झूठ जैसे क्षयरोग
खाँसता, हाँफता, थूकता मज़हबी बलगम
कहीं मंदिर के पीकदान में तो कहीं मस्ज़िद के

उन्माद की बाढ़ एकता की करार काटती
कटान अनवरत खोह बनाती
चली आ रही नाबालिग़ सोच के अहाते में

ज़ोर-ज़ोर से भारत चिल्ला रहा
ज़ोर-ज़ोर से हिन्दुस्तान चिल्ला रहा
ज़ोर-ज़ोर से हिन्दू चिल्ला रहा
ज़ोर-ज़ोर से मुसलमान चिल्ला रहा

सिख-ईसाई चुप हैं
ये दोनों ज़ोर-ज़ोर से
इण्डिया नहीं चिल्लाएँगे क्योंकि
नफ़रत के निकोटिन का आदी-
अभी इस खेत में अफ़वाह नहीं बो रहा,
परती-परौटे में ध्रुवीकरण की फ़सल नहीं उगती।

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