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क की कमी
कब कैसे है?
किसे क्या है?
कौन कहाँ है?
कौन-सा कितना है?
किधर किसका है?
क्यूँ मैं अक्सर यही सोचता हूँ?
कि 'क' अगर हिन्दी में नहीं होता तो हम...
बात
मेरे बालों में अपनी उंगलियों को फिरा के
जब तुम कहती हो कि ये बात-बात पर
जो कुछ बातें तुम बताते रहते हो
उससे कोई इत्तेफ़ाक़ भी रखते...
मैं चूम लूँगा
एक दिन मैं चूम लूँगा―
तुम्हारे माथे की लिपिबद्ध आभा को,
आँखों में ठहरी हुई तन्मयता को,
कानों में अपेक्षित ध्वनि-लिप्सा को,
अधरों पे उठते स्पंदन को,
गालों के...
लॉन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप
तुम ये खिड़की देख रहे हो न
इसी में से आता-जाता है चाँद
बादलों से चोरी-छुपे
आसमान से झूठ बोल के
मेरे कमरे में
रौशनी बिखेर देता है
और पता...
कान
अनुवाद: साउथ कोरियाई कवि 'को उन' की कविता 'इअर' (Ear)
आ रहा है कोई,
दूजे संसार से।
रात्रि-वर्षा की फुसफुसाहट
अब उधर जा रहा है कोई
उन दोनों का...
राह पूछते हुए
अनुवाद: साउथ कोरियाई शायर जनाब 'को उन' की नज़्म 'आस्किंग द वे'
तुम सब जाहिल, पूछते हो कि ख़ुदा क्या है
बल्कि पूछना चाहिए कि ज़िन्दगी...
तितली
उँगलियों पर तितली बैठी है कभी?
क्या उसके पंखों को तुम्हारी कोशिकाओं ने स्पर्श किया है?
उसकी कोमलता की मीमांसा की है तुमने?
या उससे पूछा कि...
तुम्हारे पढ़ने के योग्य नहीं
शुक्राणुओं की कमी से
मर जातें है आशा के कुछ स्वप्न और
मस्तिष्क की रसोईघर में
पकती रहती हैं स्वप्नदोष की कुछ नग्न तस्वीरें
जिन्हें एक दिन कांच...
ख़ुद-नफ़्ससाज़ी
अनुवाद: पुर्तगाल के अज़ीम शायर जनाब 'फेरनान्दो पेसोआ' की नज़्म 'ऑटोसाइकोग्राफी'
शायर वो आदमी है जो बहाने बनाता है
और इतनी शिद्दत से बहाने बनाता है...
ज़ेनटैंगल
पर्णपाती वृक्षों की भाँति मैं,
अपनी बौझक मुस्कान की पत्तियों
को गिरा दूँगा—तुम्हें देखकर,
रेहन पर रख दूँगा अपनी सारी कोशिकाओं को
तुम्हारे अधरों के गुरुत्वाकर्षण से
बचने के...
लिप-बाम
मेरी होठों की कुछ कमसिन बूंदे
जो तुम्हारे लबों से वाबस्ता हो जाती हैं
और इत्मीनान से ठहर के
इस सिलसिले में शरीक होती हैं
कि शायद ये...
इज़हार
जो रास्ता आंखों से होकर
तुम्हारी रूह के तहख़ाने तक जाता है
वहाँ-
हल्की-सी सीलन बचा के रखना,
क्या पता;
मेरा दिल वहीं फिसल जाये !