कविता संग्रह ‘एक अनाम कवि की कविताएँ’ से

चाबी ख़त्म हुए खिलौने की तरह तुम आ गए दुनिया में
तुम्हें जन्म दिया मृत्यु ने
और जैसे उसी के रक्त से जगी दीए की लौ
मृत्यु ने रचे तुम्हारे सपने
तुम्हारी आँखों से मृत्यु ही झाँकती रही
देखती रही गुलदस्ते, पढ़ती रही शुभकामनाएँ

सूखे तिनकों की तरह सपनों को तापते किस ट्रेन की प्रतीक्षा में
तुम जाग रहे हो
सारी रात सुनते रहते हो गिरजे के घण्टे, कारख़ानों के भोंपू
और पहरेदारों की सीटियाँ
नचिकेता की तरह तुम्हें किसकी प्रतीक्षा है द्वार पर
तुम्हारी आँखें क्या देखती रहती हैं दिन-रात
हवा में, धूप और रात की निस्तब्धता में

एक बेल खिड़की के शीशे पर चढ़ रही है
और झाँक रही हैं फूल
सामने पेड़ पर चिड़ियाँ बना रही हैं घोंसला
दूर पहाड़ पर धुँधला अक्स ठहर गया है स्मृति की परत की तरह

तुम्हारे भीतर हर रोज़ मरते हैं, फूल और तितलियाँ
तुम्हारे भीतर हर रोज़ कटती हैं पतंगे, टपकती हैं चिड़ियाँ
तुम्हारे भीतर उड़ती है राख पुच्छल-तारे की तरह

डूबते जहाज़ पर तुम बिल्कुल अकेले हो
ऐसे में तुम्हें लौटना चाहिए अपने भीतर
सब कुछ समेटकर अपने ही शून्य में
ख़ुद को विसर्जित करते हुए
देखते हुए उस अतृप्त काल को
जो जीने की इच्छा में घुन की तरह खा रहा है देह

तुम्हें याद करना चाहिए गोधूलि और लौटती चिड़ियाँ
सबसे ठण्डी हवा का झोंका तुम्हें याद करना चाहिए
दीए के मद्धिम प्रकाश में कोई लोरी
एक पालना, पेण्डुलम की तरह ध्यान में लाना चाहिए
नींद का आह्वान करना चाहिए

ख़याल, उन फूलों की ख़ुशबू का जो खिलते हैं रात में
इन सबके ख़याल में बारिश की हल्की झड़ी याद करना चाहिए

सो जा अपनी ही कल्पना की सृष्टि में
कुतरती मौत से बेख़बर उसी की लोरी के दिलासे में सो जा
सो जा कि उछली हुई गेंद, अब नहीं लौटेगी मैदान पर

सो जा कि पहाड़ की छाती से सटकर सो गई है रात
और मैदान में छूट गए हैं उसके पैरहन
सो जा कि लोगों के भय का
तू बन चुका है दर्पण
सो जा, समझकर ख़ुद को मौसम का फूल
सो जा टूटी किरणों के घोंसले में
सो जा उस विशाल पालदार नाव में
हवा जिसका गन्तव्य जानती है।

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अनाम कवि
80'-90' के दशक में टंकित कविताओं-लोरियों की एक पाण्डुलिपि हिन्दी के सुपरिचित कवि दूधनाथ सिंह जी को मिली, जिस पर किसी का नाम नहीं था। यही कविताएँ और लोरियाँ 'एक अनाम कवि की कविताएँ' नाम से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुईं।

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