80'-90' के दशक में टंकित कविताओं-लोरियों की एक पाण्डुलिपि हिन्दी के सुपरिचित कवि दूधनाथ सिंह जी को मिली, जिस पर किसी का नाम नहीं था। यही कविताएँ और लोरियाँ 'एक अनाम कवि की कविताएँ' नाम से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुईं।
पार्क के कोने में
घास के बिछौने पर लेटे-लेटे
हम अपनी प्रेयसी से पूछ बैठे—
क्यों डियर!
डैमोक्रैसी क्या होती है?
वो बोली—
तुम्हारे वादों जैसी होती है!
इंतज़ार में
बहुत तड़पाती...
उसका समय
मेरे समय से अलग है—
जैसे उसका बचपन, उसकी गुड़ियाँ-चिड़ियाँ
यौवन आने की उसकी पहली सलज्ज पहचान अलग है।
उसकी आयु
उसके एकान्त में उसका प्रस्फुटन,
उसकी इच्छाओं...
मुझे स्वतंत्रता पसन्द है
वह बढ़िया होती है समुद्र-जैसी
घोड़ा
आओ, उसका परिचय कर लेंगे
शतकों की सूलि पर चढ़ते हुऐ
उसने देखा है हमें
अपना सबकुछ शुरू होता है...
अनुवाद: मनोज पटेल (पढ़ते-पढ़ते से साभार)
(पत्नी पिराए के लिए)
21 सितम्बर 1945
हमारा बच्चा बीमार है।
उसके पिता जेल में हैं।
तुम्हारे थके हाथों में तुम्हारा सर बहुत...