किसी की खनखनाती सी
हँसी के शोर में
किसी की सिसकियों को
सुन सकोगे!
तड़पती रात जब आकर के
खड़ी होगी सिरहाने
तो फ़िर कोई ख़्वाब अधूरा
बुन सकोगे!
चलो अब मान लो
हम संग नहीं होंगे तुम्हारे
सफ़र तब तो मुक़म्मल
कर सकोगे…

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