क्रोध
सिर्फ़ वही नहीं है
जो बताया गया है अब तक –
एक क्षणिक आक्रोश,
क्रोध, दुःख और विवशता का
चरम स्तर भी है
क्रोध, अपने अस्तित्व की खोज की
राह में, अचानक फूट पड़ा
ज्वालामुखी है
क्रोध, जीवन के खालीपन को
भरने के लिए, उमड़ पड़ा
तूफ़ान है
निस्संदेह, क्रोध
उचित नहीं, किन्तु
यदि क्रोध उपजा ही है तो
उसका निस्तारण
अपरिहार्य है
उचित रीतियों से
क्रोध पर एकाधिकार नहीं
किसी का भी,
उम्र में छोटे लोगों का क्रोध, समाज को
अच्छा नहीं लगता
बड़े छोटों पर क्रोध कर सकते हैं,
यह स्वीकार्य है समाज को, तो
छोटों को भी पूरा अधिकार है,
बड़ों के प्रति अपना क्रोध प्रकट करने का
शान्ति से, तर्कों के माध्यम से
बिल्कुल उचित तरीके से
क्रोध के क्षण यदि
स्नेह और अपनत्व से
समझे जायें तो
जीवन की मृदुता
सदैव हरी रहे
क्योंकि
क्रोध का,शब्दों में,
व्यक्त हो जाना ही
श्रेयस्कर है
अव्यक्त क्रोध
मन और जीवन को
खोखला बना देता है
क्रोध को शांति से
व्यक्त न कर पाने वाले
और उसे अव्यक्त ही रहने देने वाले लोग
विजेता नहीं,
स्वयं से ही हारे हुए होते हैं!

©अनुपमा विन्ध्यवासिनी

Previous articleसोचना
Next articleकई दफ़ा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here