सरगम के गांव लौट आने की खबर सुन कर छबीली बहुत खुश थी। कितने महीनों से वह उसकी राह देख रही थी। जब से वह गया था उसके जीवन में खामोशी सी आ गई थी। जो उसे बहुत अखरती थी। सरगम ही तो उसके जीवन का संगीत था। उसके नेत्रहीन जीवन की रौशनी।

सरगम उसके बचपन का साथी था। बहुत मीठा गला था उसका। वह उसे मीठे मीठे गीत सुना कर उसका मन बहलाता था। उसके गीत छबीली की सबसे बड़ी पूंजी थे।

एक दिन सरगम एक म्यूज़िकल ग्रुप के साथ गांव छोड़ कर चला गया। छबीली उसकी प्रतीक्षा करने लगी। उसे यकीन था कि जब भी वह आएगा उसके लिए गीत गाएगा।

आहट सुन कर वह खिल उठी “सरगम तुम…”

“तुमने कैसे जान लिया?” सरगम ने अचरज से पूँछा।

“तुम्हारा ही तो इंतज़ार कर रही थी। कैसे हो?”

“अच्छा हूँ। तुम कैसी हो?”

“मैं ठीक हूँ। तुमने तो वहाँ भी सबका दिल जीत लिया होगा।”

“हाँ लोग मेरे गीतों को पसंद करते हैं।”

“मुझे भी कोई गीत सुनाओ।”

“ऐसे कैसे। बिना साज़ों के मूड नहीं बनता है।”

“पर पहले तो मेरे लिए यूं ही गाते थे।”

सरगम हंस कर बोला- “तब की बात और थी। अब तो लोगों मे मेरा नाम है। अब ऐसे नहीं गा सकता।”

छबीली चुप हो गई। सरगम के गीत अब उसकी पूंजी नहीं थे।

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