चन्दन पाण्डेय के उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ से उद्धरण | Quotes from Vaidhanik Galp (‘Legal Fiction’ in English), a novel by Chandan Pandey
“ख़ुद मुझे भी नहीं याद आ रहा था कि पिछली बार मैंने कब किसी की ऐसी सहायता की होगी जिसमें मेरा समय लगा हो या ऊर्जा लगी हो। मदद मेरे तईं अब महज़ चन्दे तक सीमित रह गई थी।”
“भाषा हमें किस क़दर लाचार कर देती है, यह भाषा में ही बताया जाना सम्भव है।”
“असफलताएँ ख़ूब सारे अभिभावक भी देती हैं।”
“मुझे सहमत हो जाने के अलावा दूसरी कोई प्रतिक्रया आती नहीं।”
“अक्सर यह समझने में चूक हो जाती है कि हिंसा का जनक कोई आसमानी ताक़त है या हम मनुष्य?”
“समृद्धि ने उसकी सुन्दरता में अपरूप इज़ाफ़ा कर दिया है।”
“क्या व्यवस्था इन तौर-तरीक़ों की इजाज़त देती भी है कि दूसरों के गम में हम इस तरह शरीक हों कि कोई क़ानूनी मदद कर सकें। मसलन, क्या हम दोस्तों के लिए भी उसी शिद्दत से संस्थाओं से लड़ सकते हैं जितना अपने सगे-जनों के लिए?”
“जाने वाला आपकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ चला गया हो तब उसकी तलाश की जा सकती है लेकिन जब कोई अपनी मर्ज़ी से ही चला जाए तब अगर कोई ढूँढेगा तो यही लगेगा कि वह बदला लेना चाहता है। उसे छोड़ देना चाहिए। जाने वाले को जाने देना चाहिए। दुविधा प्रेम के लिए बनी ही नहीं है।”
“जहाँ अपराधों पर, हत्याओं पर कोई नाराज़गी नहीं बल्कि उन पर चर्चा करना नाराज़गी का सबब हो, वहाँ किसी दूसरी बात का क्या बुरा मानना।”
“सम्बन्धों में झूठ और धोखे इसलिए भी खप जाते हैं क्योंकि लोग अकेले नहीं छूट जाना चाहते। इसलिए वो इशारों को दरकिनार करते हैं। नंगी सचाइयों को मन के वहम से ढाँप लेते हैं। जो जानते हैं कि प्रेम पर उनका कोई वश नहीं वो तो ख़ैर सच, झूठ या धोखे जैसी जालसाज़ियों में पड़ते ही नहीं।”
“मैंने पाया कि बच्चे की बात को मैं बतौर हथियार इस्तेमाल कर रहा था। यह ख़याल मुझे जकड़ गया था कि मैं, जिसका बस एकाध दिन का वास्ता है, अगर बच्चे का इस्तेमाल उस स्त्री के लिए या उस स्त्री के मनोभावों के विरुद्ध कर रहा हूँ तब जो जीवन भर साथ रहते होंगे वो इस हथियार का कितना बुरा और कितनी दफ़ा इस्तेमाल करते होंगे। स्त्री के इस प्रकृति प्रदत्त वरदान को मनुष्यों ने अभिशाप में बदलने की कोई कसर जो छोड़ी हो।”
“लोग इस भय से भी आईना नहीं देखना चाहते कि कहीं किसी अपने का अपराधी चेहरा न दिख जाए।”
शिवेन्द्र के उपन्यास 'चंचला चोर' से उद्धरण