Tag: Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh
एक बूँद
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी?
देव...
पगली का पत्र
"मैं तो प्यारे! तुमको सब जगह पाती हूँ, तुमसे हँसती-बोलती हूँ, तुमसे अपना दुखड़ा कहती हूँ, तुम रीझते हो तो रिझाती हूँ, रूठते हो तो मनाती हूँ। आज तुम्हें पत्र लिखने बैठी हूँ। तुम कहोगे, यह पागलपन ही हद है। तो क्या हुआ, पागलपन ही सही, पागल तो मैं हुई हूँ, अपना जी कैसे हल्का करूँ, कोई बहाना चाहिए.."