Tag: Criticism
कविता सपनों की
वर्ण-वर्ण संजोकर
गढ़ी थी मैंने
अपने सपनों की कविता।
परन्तु
कितनी निर्दयता से किया पोस्ट्मार्टम
कथित विशेषज्ञों ने,
पंक्तियाँ
वाक्य
शब्द
बिखेर कर परखे गए।
मुझे दुःख न हुआ
दुःख तो तब हुआ
जब—
शब्दों का संधिविच्छेद कर
उन...
आलोचना
"लेखक विद्वान हो न हो, आलोचक सदैव विद्वान होता है। विद्वान प्रायः भोण्डी बेतुकी बात कह बैठता है। ऐसी बातों से साहित्य में स्थापनाएँ...