Tag: Devendra Satyarthi
मंदिर वाली गली
"अब दूर-दूर के यात्री अपना लिबास कहाँ छोड़ आएं, राय साहिब और उन बेचारों के चेहरे मुहरे जैसे हैं वैसे ही तो रहेंगे। बंगाली, महाराष्ट्री, गुजराती और मद्रासी अलग-अलग हैं तो अलग-अलग ही तो नज़र आएँगे। अपना-अपना रूप और रंग-ढंग घर में छोड़कर तो तीर्थ यात्रा पर आने से रहे।"
परियों की बातें
मैं अपने दोस्त के पास बैठा था। उस वक़्त मेरे दिमाग़ में सुक़्रात का एक ख़याल चक्कर लगा रहा था— क़ुदरत ने हमें दो...