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आज का एकलव्य
यह कविता यहाँ सुनें:
https://youtu.be/xGEsqP19JHE
ए महाभारत के द्रोणाचार्य!
तुमने आज पुनः गुरु-दक्षिणा का ढोंग रचा है
लेकिन मैं हूँ एकलव्य आज का
सदियों पुराना नहीं
तुम्हारी नस-नस से परिचित...