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फागुन का सन्देश
लोहे की तलवार से तेज रंग की धार,
पीले नीले बैंगनी फागुन के हथियार,
बासन्ती मनवा भया छेड़े फागुन राग,
शीतल जल की धार से छूटे मन के दाग,
फागुन...
रतिरंगी होली
माँग सिन्दूरी
नैना कजरारे
होंठों पर लाली
गाल गुलाली,
हाँथों में मेंहदी
पाँव महावर
रंगों संग अंगों की
रतिरंगी होली.
〽️
© मनोज मीक
होली
पुरुष के लिए सही गलत की परिभाषा यही रही है कि जो वह करे, वह सही और जो उसे न करने दिया जाए, वह गलत.. और उसके लिए स्त्री ने केवल उसका कहा मानने के लिए ही जन्म लिया है.. ऐसे में स्त्री खुद्दार होने के बावजूद यदि आर्थिक रूप से अपने पति पर निर्भर हो तो उसकी स्थिति इस कहानी की 'करुणा' जैसी ही हो जाती है! पढ़िए सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी 'होली'!