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ख़ाली मुलाक़ात
'Khali Mulaqat', a poem by Rag Ranjanहम एक अनजान रास्ते पर ख़ूब चलेहम चलते-चलते सहसा रुके
और एक-दूसरे से पूछा-
हम भाग रहे हैं कहीं से
या...
चित्रलेखा
"जब भी मैं अलगाव की कोई भी बात पढ़ती हूँ तो उद्विग्न हो जाती हूँ। उस व्यक्ति से घृणा होने लगती है जिसने अलग होने की भूमि तैयार की है जबकि ऐसा आवश्यक नहीं कि वह गलत हो।"