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अनामिका अनु की कविताएँ
मैं मारी जाऊँगी
मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी
जिससे भिन्न सोचती हूँ।भीड़-सा नहीं सोचना
भीड़ के विरुद्ध होना नहीं होता है।
ज़्यादातर भीड़ के भले के लिए...
अम्बिकेश कुमार की कविताएँ
Poems: Ambikesh Kumar
विकल्प
उसने खाना माँगा
उसे थमा दिया गया मानवविकास सूचकाँक
उसने छत माँगी हज़ारों चुप्पियों के बाद
उसे दिया गया एक पूरा लम्बा भाषण
उसने वस्त्र माँगा मेहनताना
उसे...
भीड़ चली है भोर उगाने
भीड़ चली है भोर उगाने।
हाँक रहे हैं जुगनू सारे,
उल्लू लिखकर देते नारे,
शुभ्र दिवस के श्वेत ध्वजों पर
कालिख मलते हैं हरकारे।
नयनों के परदे ढँक सबको
मात्र दिवस...
हम मिलते रहेंगे
जैसा कि तय था
हम मिलते हैं उतनी ही बेक़रारी से
जैसे तुम आये हो किसी दूसरे ही नक्षत्र से
अपने हमवतन दोस्तों के पासअपने गर्म कपड़ों,...
हम उस दौर में जी रहे हैं
हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ
फेमिनिज्म शब्द ने एक गाली का रूप ले लिया है
और धार्मिक उदघोष नारे बन चुके हैं
जहाँ हत्या,...