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Chitkobra - Mridula Garg

मृदुला गर्ग – ‘चित्तकोबरा’

मृदुला गर्ग के उपन्यास 'चित्तकोबरा' से उद्धरण | Quotes from 'Chittakobra', a novel by Mridula Garg चयन: विक्रांत (शब्द अंतिम) "जो मन में हो, उसे छिपाना...
Mridula Garg

हरी बिंदी

भारत की एक विवाहित स्त्री से अगर यह कहा जाए कि एक दिन के लिए वह मान ले कि वह विवाहित नहीं है, तो उसकी आम दिनचर्या में क्या या क्या-क्या बदलाव आएँगे? परिवार की शर्म एक बात है लेकिन पति की अनुपस्थिति तक से यदि स्त्री का व्यवहार अपने प्रति बदलने लगे तो यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है, इसे समझने की शुरुआत हो जानी चाहिए!
Mridula Garg

यहाँ कमलनी खिलती है

एक औरत सूती सफेद साड़ी में लिपटी थी। पूरी की पूरी सफेद; रंग के नाम पर न छापा, न किनारा, न पल्लू। साड़ी थी एकदम कोरी धवल पर अहसास, उजाले का नहीं, बेरंग होने का जगाती थी। मैली-कुचैली या फिड्डी-धूसर नहीं थी। मोटी-झोटी भी नहीं, महीन बेहतरीन बुनी-कती थी जैसी मध्यवर्ग की उम्रदराज शहरी औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हाँ, थी मुसी-तुसी। जैसे पहनी नहीं बदन पर लपेटी भर हो। बेखयाली में आदतन खुँसी पटलियाँ, कंधे पर फिंका पल्लू और साड़ी के साथ खुद को भूल चुकी औरत।
Mridula Garg

बाल गुरु

लड़का तब चौथी कक्षा में पढ़ता था। इतिहास की क्लास चल रही थी। टीचर बोल रही थी कि बस बोल रही थी। ज्ञानवर्द्धक अच्छी-अच्छी...
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