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कुआँ प्यासे के पास आया
अगर अभिनेता कवि गोष्ठियों में कविता सुनने जा सकते हैं तो कवि रंगमंच पर अभिनय देखने भी तो आ सकते हैं.. ऐसी ही बात किसी सज्जन ने पृथ्वीराज कपूर और निराला के बीच उठा दी थी, जिसे निराला ने सहज ही स्वीकार भी कर लिया था! उसी दिन पृथ्वीराज कपूर ने कहा था- 'कुआँ प्यासे के पास आया'!पढ़िए कविता, साहित्य और नाट्यकला की त्रिवेणी की महत्ता स्थापित करता पृथ्वीराज कपूर का यह संस्मरण..