पृथ्वी के लिये पसीना
राजस्व नहीं
सत्व है
मिट्टी के श्रम से
यह संपन्न पृथ्वी
माँगती नहीं कोई दान
सत्व है पसीना
पृथ्वी के लिये
बेगार में अर्पित
कोई सौगात नहीं है
किले में...
हम पृथ्वी की शुरुआत से स्त्री हैं
सरकारें बदलती रहीं
तख़्त पलटते रहे
हम स्त्री रहे
विचारक आए
विचारक गए
हम स्त्री रहे
सैंकड़ों सावन आए
अपने साथ हर दूषित चीज़ बहा...
अनुवाद: पंखुरी सिन्हा
युद्ध के बाद ज़िन्दगी
कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं
बग़ीचे की झाड़ियाँ
हिलाती हैं अपनी दाढ़ियाँ
बहस करते दार्शनिकों की तरह
जबकि पैशन फ़्रूट की नारंगी
मुठ्ठियाँ जा...
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