तुम नहीं आए थे जब, तब भी तो मौजूद थे तुम
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
दर्द की लौ की तरह, प्यार की ख़ुश्बू की तरह
बेवफ़ा वादों की दिलदारी का अन्दाज़ लिए

तुम नहीं आए थे जब, तब भी तो तुम आए थे
रात के सीने में महताब के ख़ंजर की तरह
सुब्ह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
शाख़-ए-ख़ूँ-रंग-ए-तमन्ना में गुल-ए-तर की तरह

तुम नहीं आओगे जब, तब भी तो तुम आओगे
याद की तरह धड़कते हुए दिल की सूरत
ग़म के पैमाना-ए-सर-शार को छलकाते हुए
बर्ग-हा-ए-लब-ओ-रुख़्सार को महकाते हुए
दिल के बुझते हुए अँगारे को दहकाते हुए

ज़ुल्फ़-दर-ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा फिर रात का रंग
शब-ए-तन्हाई में भी लुत्फ़-ए-मुलाक़ात का रंग
रोज़ लाएगी सबा कू-ए-सबाहत से पयाम
रोज़ गाएगी सहर तहनियत-ए-जश्न-ए-फ़िराक़
आओ आने की करें बातें कि तुम आए हो
अब तुम आए हो तो मैं कौन सी शय नज़्र करूँ
कि मिरे पास ब-जुज़ मेहर ओ वफ़ा कुछ भी नहीं
एक ख़ूँ-गश्ता तमन्ना के सिवा कुछ भी नहीं!

अली सरदार जाफ़री की नज़्म 'तू मुझे इतने प्यार से मत देख'

Book by Ali Sardar Jafri:

अली सरदार जाफ़री
अली सरदार जाफरी एक उर्दू साहित्यकार हैं। इन्हें 1997 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।