वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
शब-ए-फ़ुर्क़त के ग़म झेले हुओं का दम निकलता है

इलाही ख़ैर हो उलझन पे उलझन बढ़ती जाती है
न मेरा दम न उन के गेसुओं का ख़म निकलता है

क़यामत ही न हो जाए जो पर्दे से निकल आओ
तुम्हारे मुँह छुपाने में तो ये आलम निकलता है

शिकस्त-ए-रंग-ए-रुख़ आइना-ए-बे-ताबी-ए-दिल है
ज़रा देखो तो क्यूँ कर ग़म-ज़दों का दम निकलता है

निगाह-ए-इल्तिफ़ात-ए-मेहर और अंदाज़-ए-दिल-जूई
मगर इक पहलू-ए-बेताबी-ए-शबनम निकलता है

‘सफ़ी’ कुश्ता हूँ ना-पुर्सानियों का अहल-ए-आलम की
ये देखूँ कौन मेरा साहब-ए-मातम निकलता है

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सफ़ी लखनवी
सफ़ी लखनवी (जनवरी 2, 1862–1950), एक भारतीय उर्दू शायर थे, जिन्होंने उर्दू शायरी तथा लखनवी भाषा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उनका जन्म लखनऊ में हुआ था। उनका मूल नाम सैयद अली नक़ी जैदी था।

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