यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं, ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
हैं ज़माने में अजब चीज़ मोहब्बत वाले
दर्द ख़ुद बनते हैं, ख़ुद अपनी दवा होते हैं
हाल-ए-दिल मुझसे न पूछो, मेरी नज़रें देखो
राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं
मिलने को यूँ तो मिला करती हैं सबसे आँखें
दिल के आ जाने के अंदाज़ जुदा होते हैं
ऐसे हँस-हँसके न देखा करो सबकी जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं!
'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर'