कविता हम बोले रोटी By ओम पुरोहित 'कागद' - March 12, 2020 Share FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmailPinterestTumblr उन्होंने कहा— देखो! हमने देखा! …वे ख़ुश हुए। उन्होंने कहा— सुनो! वे बहुत ख़ुश हुए! उन्होंने कहा— खड़े रहो! हम खड़े रहे! वे बहुत ही ख़ुश हुए। उन्होंने कहा— बोलो! हमने कहा— ‘रोटी’! वे नाराज़ हुए! बहुत नाराज हुए!! बहुत ही नाराज़ हुए!!! Book by Om Purohit ‘Kagad’: RELATED ARTICLESMORE FROM AUTHOR कविता तीन चित्र : स्वप्न, इनकार और फ़ुटपाथ पर लेटी दुनिया कहानी मेहमान कहानी क़ब्ल-अज़-तारीख़ अनुवाद एदुआर्दो गालेआनो की चुनी हुई रचनाएँ (‘आग की यादें’ से) कहानी ख़ून