‘Khali Gaon’, Hindi Kavita by Yogesh Dhyani
पहले वो बोता है थोड़ी घास
हल्के हरे रंग से
फिर एक पतली सड़क के दोनों ओर
उकेर देता है खेत
खेतों में बाँसों पर टाँगता है
उल्टी हाण्डी पर रंगे चेहरे
जो ज़मीन के बंजर न होने का प्रमाण हैं
कुँए की ओर कलसी के संग जाती स्त्रियाँ
कुँए के भरे होने का रंगीन संकेत हैं
कुछ अधूरा लगने पर सड़क से कुछ दूर
बहाता है एक नदी
छोड़ता है नौका
फिर कुछ बनाते-बनाते खींच लेता है अपने हाथ
और मन ही मन कहता है
कम से कम यहाँ पर कोई जाल नहीं
और इस तरह बसाता है चित्रकार
मूल निवासियों द्वारा छोड़ा जा चुका
ख़ाली गाँव
काग़ज़ पर फिर से।
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