“मैंने एक अनुभव किया है- जब भी मैं अलगाव की कोई भी बात पढ़ती हूँ तो उद्विग्न हो जाती हूँ। उस व्यक्ति से घृणा होने लगती है जिसने अलग होने की भूमि तैयार की है जबकि ऐसा आवश्यक नहीं कि वह गलत हो। प्रेम तो प्रेम है आखिर। पता नहीं। हो सकता है गलत भी हो। पर मेरी सोचने की क्षमता पर मेरी भावनाएँ हावी हो जाती हैं, जो कि सही नहीं है। प्रेम पर विश्वास रखते हुए मुझे यह शक्ति भी विकसित करनी होगी कि मैं सत्य को स्वीकार कर पाऊँ।”

“ओ येह, चित्रलेखे! ओ येह!”

” ही ही..।। अच्छा ठीक है ना। शट’अप!!”