अमीर ख़ुसरो के दोहे | Amir Khusro Ke Dohe
ख़ुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥
ख़ुसरो दरिया प्रेम का, सो उल्टी वाकी धार।
जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार॥
खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा॥
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल ख़ुसरो घर आपने, साँझ भयी चहु देस॥
ख़ुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय।
कहे ख़ुसरो पीर के रुठते, मौला नहि होत सहाय॥
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रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग॥
ख़ुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे, हारी पी के संग॥
चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय॥
ख़ुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय॥
उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान॥
श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत॥
पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव॥
नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय॥
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन॥
रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैन॥
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस॥
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आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ।
न मैं देखूँ औरन को, न तोहे देखन दूँ।
अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई॥
ख़ुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय॥
संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत॥
ख़ुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा साँस का, बाजत है दिन रैन॥
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ताज़ी खूटा देस में कसबे पड़ी पुकार।
दरवाजे देते रह गए निकल गए उस पार॥
देख मैं अपने हाल को रोऊँ, ज़ार-ओ-ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत है, हम हैं औगुन हार॥
पहले तिय के हीय में, डगमत प्रेम उमंग।
आगे बाती बरति है, पीछे जरत पतंग॥
भाई रे मल्लाहो हम को पार उतार।
हाथ को देऊँगी मुँदरी, गले को देऊँ हार॥
वो गए बालम वो गए नदिया पार।
आपे पार उतर गए, हम तो रहे मझधार॥
सेज सूनी देख के रोऊँ दिन-रैन।
पिया पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन॥
सौ नारें सौ सुख सेवैं कंता को गुल लार।
मैं दुखियारी जनम की दुखी गई बहार॥
ख़ुसरो की पहेलियाँ