हरियाली को आँखें तरसें, बगिया लहूलुहान!
प्यार के गीत सुनाऊँ किस को शहर हुए वीरान!
बगिया लहूलुहान!

डसती हैं सूरज की किरनें, चाँद जलाए जान
पग-पग मौत के गहरे साए, जीवन मौत समान
चारों ओर हवा फिरती है ले के तीर कमान!
बगिया लहूलुहान!

छलनी हैं कलियों के सीने, ख़ून में लथपथ पात
और न जाने कब तक होगी अश्कों की बरसात
दुनिया वालो कब बीतेंगे दुःख के ये दिन-रात
ख़ून से होली खेल रहे हैं धरती के बलवान!
बगिया लहूलुहान!

हबीब जालिब की नज़्म 'दस्तूर'

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हबीब जालिब
हबीब जालिब एक पाकिस्तानी क्रांतिकारी कवि, वामपंथी कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने मार्शल लॉ, अधिनायकवाद और राज्य दमन का विरोध किया।

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