बनारस की गालियाँ ऐसी हैं,
जैसे एक खूबसूरत स्त्री के बेफ़िक्री से खुले बाल।
कुछ सुनहरा रंग लिए हुए, कुछ काले सी
कुछ रेल की पटरियों सी सीधी, कुछ घुंघराले सी
कुछ जवां, कुछ पुराने चेहरों की झुर्रियों सी
कुछ उलझी बसी, कुछ सुलझी सी
कुछ मसान सी शांत, कुछ गंगा की लहरों के शोर सी
कुछ महादेव की जटा सी निर्मल, कुछ चांद के दाग सी
उफ़्फ़! ये बनारस की गालियां।

Previous articleमहादेवी वर्मा – ‘ठकुरी बाबा’
Next articleमाया दर्पण
अशोक सिंह 'अश्क'
अशोक सिंह 'अश्क' काशी हिंदू विश्व विद्यालय वाराणसी मोबाइल न० 8840686397, 9565763779 ईमेल [email protected] com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here