पीढ़ियाँ हैं
पहले और बाद के पुरा चित्र भी,
भीम हैं
और उनके आकार की बैठकायें भी

स्तूप हैं
बुद्ध और उनका बोध भी,
किलेदार हैं महल
और मन्नतों की मज़ार भी

राजाभोज हैं,
बेगम और रानी से सवाल भी,
गंगू है
और गंगा-सागर सा ताल भी

शिवोहम है
शिवालय और महालिंग भी,
मीनारें हैं
ढाई और कई सीढ़ियों की ईदगाह भी

उद्योग हैं
मिलों और चिमनियों का ख़ौफ़ भी,
विकराल है काल
और रसायनों से बेहाल भी

पाषाण है,
बौद्ध, परमार, गोंड
और अफ़ग़ान भी,
भोजपाल है भूपाल
और आज मेरा भोपाल भी!

〽️
© मनोज मीक

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मनोज मीक
〽️ मनोज मीक भोपाल के मशहूर शहरी विकास शोधकर्ता, लेखक, कवि व कॉलमनिस्ट हैं.

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